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योगी जी को पत्र: ज़फराबाद के मनहेच किले और मछलीशहर के सगरे कोट को बचाएं

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सेवा में ,   श्री योगी आदित्यनाथ जी,   माननीय मुख्यमंत्री महोदय,    उत्तर प्रदेश सरकार,  लोकभवन, लखनऊ-226001   विषय:  ज़फराबाद के मनहेच किले ( राजा जयचंद का टीला) और मछलीशहर के सगरे कोट ( की जमीन ) पर हो रहे अतिक्रमण को रोकने, हुए अतिक्रमण को हटाने , और दोनों ही स्थानों  को  सुरक्षित-संरक्षित कराये जाने का आग्रह।    पूज्यवर,   1325 में पुराने ज़फराबाद को ज़फर शाह तुगलक ने और 1359 में पुराने जौनपुर को फिरोज़  शाह तुगलक ने इस तरह ध्वस्त किया कि कोई भी पुराने अवशेष शेष न रहें। शर्की सल्तनत के दौरान भी तकरीबन वही नीति जारी रही। इन हुकूमतों का इरादा यह था कि लोग पुरानी सभ्यता और संस्कृति को पूरा तरह भूल जायें। विस्मृति की इतनी गहरी परत चढ़ाई गयी कि आज किसी को यह भी नहीं पता कि इन नगरों के पुराने नाम क्या थे।   पुराने इतिहास के जो थोड़े से स्मृति चिह्न बचे हैं, उनमें से दो बहुत महत्वपूर्ण हैं। उनमें से एक जफराबाद स्थित मनहेच किला है , जो कागजों में राजा जयचंद के टील...

यदि आप पूर्वांचल से हैं तो मनहेच और सगरेकोट को बचाने का संकल्प लें 

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1325 में ज़फराबाद को ज़फर और 1359 में जौनपुर को फिरोज़ शाह तुगलक ने पूरी तरह से मलबे में बदल दिया। हिंदू या बौद्ध संस्कृति के एक भी मंदिर, महल या भवन नहीं छोड़े गए।  यह विध्वंश शर्की सल्तनत के दौरान भी जारी  रहा। दोनों ही सल्तनतों का इरादा था कि लोग पुरानी सभ्यता और संस्कृति को पूरी तरह भूल जाएं, और ऐसा कोई भी चिह्न न बचे जो पुरानी चीजों की याद दिलाये। वही हुआ भी।  आज किसी को यह भी नहीं पता कि इन शहरों के पुराने नाम भी क्या थे।    दो ही बड़ी स्मृतियां, वह भी खाली जमीन  के रूप में अभी तक पड़ी थीं। एक , राजा जयचंद का टीला है। जहां, कभी मनहेच नाम का किला था।  जो काशी विश्वेश्वर का रक्षक दुर्ग था। कहा जाता है कि इसी जगह पर पहले राजा हरिश्चंद्र का महल था।  दूसरी जगह है, मछली शहर के पास का सगरेकोट। जिसके बारे में कहा जाता है कि आस्तिक मुनि के गर्भ में रहने के दौरान नाग माता जरत्कारु वहां रही थीं।  इस्लामी शासन के दौरान दोनों ही स्थानों के पत्थर निकाल कर उन्हें खाली जमीन में बदल दिया गया था।  लेकिन ये दोनों स्मृतियां भी खत्म...

अयोध्या में दिवाली का इस बार का पर्व विशेष है

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अयोध्या में दिवाली का इस बार का पर्व विशेष है। ५०० साल बाद भगवान राम लला विराजमान की उपस्थिति में दिवाली मनाई जा रही है। आप सभी को अनंत शुभकामनाएं। लव को श्रावस्ती की राजधानी मिली थी। लाहौर शहर और लाओस देश लव के नाम पर बसे हैं। कुश को दक्षिण कोशल की कुशावती मिली थी। कुशीनगर कुश के नाम पर है। लाहौर के पास का कसूर शहर भी कुश के वंशजों ने बसाया। लेकिन कुश के वंशजों की यही सीमा नहीं है। कुश के एक वंशज थे मरु। उनके बारे में कहा गया है कि वे कलाप ग्राम में तप कर रहे हैं, और नये सतयुग में सूर्य वंश की फिर से स्थापना करेंगे। ज़फराबाद और जौनपुर के इस्लाम पूर्व इतिहास को प्रस्तुत कर रही ऐतिहासिक फिल्म ज़फराबाद जौनपुर आख्यान में हम दिखा रहे हैं, कौन थे मरु, कहाँ उन्होंने तप किया; और फिर उन्होंने और उनके वंशजों ने कहां और कितने साम्राज्य बनाये। यह कथा दुनिया का इतिहास बदलनेवाली कथा तो है ही, दुनिया को एक नयी सांस्कृतिक समझ देनेवाली कथा भी है। एक बार फिर दिवाली की अनंत शुभकामनाएं। चित्र: लव और कुश के साथ माता सीता

अब, जब ५०० साल बाद जन्मभूमि मंदिर में विराजे प्रभु श्री राम।

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हम सबके जीवन में सुख और समृद्धि का वास हो। #दिवाली, २०२४।