लाखन की वीरता; और जब बेला ने काट लिया भाई का सिर ज़फराबाद में राजा जयचंद के भतीजे कन्नौज के राजकुमार लाखन के बैठके / अखाड़े के अवशेष अभी भी बचे हुए हैं। कन्नौज के राजा जयचंद के भतीजे और कन्नौज के राज्य सिंहासन के उत्तराधिकारी लाखन लाखों में एक वीर थे। आल्हा-ऊदल से उनकी गहरी मित्रता थी, जिस कारण से परमाल राजवंश से भी उसकी नजदीकी थी। पृथ्वीराज ने जब महोबा पर बड़ा हमला किया, और सभी ५२ घाटों और १३ घाटियों की घेरेबंदी करवा दी, तो लाखन ने ही यह घेरा तोड़ा और पृथ्वीराज को दिल्ली लौटने को मज़बूर कर दिया। ऐसी थी यह नदी बेतवा की लड़ाई- नदी बेतवा के झाबर मां बाजे घूमि घूमि तलवार जैसे नाहर कनउजवाले वैसे दिल्ली के सरदार -- हौदा हौदा एकमिल ह्वैगा अंकुश भिड़ा महौतन क्यार पैदल पैदल कै वरणी भै अउ असवार साथ असवार--- जैसे भेड़िन भेड़िहा पैठे जैसे अहिर बिडारै गाय वैसे पैठयो लाखनि राना कोऊ घूर नहीं समुहाय--- सांकरि फेरै भूरी हथिनी सब दल हटत पछारी जाय आदि भयंकर पीछे हटिगा पीछे हटे पिछौरा राय -- तीन सौ हाथियों के घेरे में फंस गए लाखन। सारी सेना भाग गयी। महावत ने कहा, रण से पीछे हट चलें। लेकिन, लाखन ने कहा- रजपू...
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